देश में कानून का सख्त अमल करके जल्द से जल्द न्याय करने की आवश्यकता है

तसवीर में बाहिनी ओर से के. पी. कृष्णन, पी. चिदंबरम तथा रमेश अभिषेक

पी चिदंबरम, रमेश अभिषेक और के. पी कृष्णन को मुंबई बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा भेजें गयें समन्स

पी चिदंबरम, रमेश अभिषेक और के. पी. कृष्णन। विचारक्रांति के पाठक इन तीन नामों से अनजान नहीं हैं। इस देश का कोई भी नागरिक चिदंबरम के नाम से अज्ञात नहीं है, लेकिन कई पाठक इस बात से अनजान हैं कि इन तीनों व्यक्तियों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उन्हें एक बड़े आरोप का सामना करना पड़ रहा है कि उन्होंने फायनेंशियल टेक्नॉलॉजीज कंपनी समूह के खिलाफ षड्यंत्र द्वारा न सिर्फ समूह को, बल्कि देश को भी नुकसान पहुंचाया है। एक कार्पोरेट समूह, जो मेक इन इंडिया का अच्छा उदाहरण था, उस के खिलाफ साजिश रचने का भी आरोप है। इस कार्पोरेट ग्रुप का मूल्य आज 50,000 करोड़ से 60,000 करोड़ रुपये तक का हो सकता है, लेकिन उस साजिश ने इस मूल्य का घटाने का दुष्कृत्य किया है। हालांकि, अब कानून इन तीनों व्यक्तियों तक पहुंच रहा है। उन्हें अपने कृत्यों के बारे में अदालत के समक्ष जवाब देना होगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीनों को पेश होने के लिए समन्स भेजें गयें हैं। 63 मून्स टेक्नॉलॉजीज का दावा है कि उनके खिलाफ हुई दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के कारण उनके शेयरधारकों को 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इस दावे के साथ उसने इन तीनों व्यक्तियों से हर्जाना वसूल करने के लिए मुकदमा किया है। अदालत ने तीनों व्यक्तियों को 15 अक्टूबर, 2019 को उपस्थित रहने के लिए समन्स जारी किये हैं।

समय ही बताएगा कि इस मुकदमे का क्या परिणाम होगा, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि कानून ने अपना वर्चस्व दिखाया है। यह विश्वास कि कानून के शिकंजे से किसी भी आरोपी बच नहीं पाता, वह इस तिकड़ी को मिले समन्स से साबित होता है। अदालत ने आरोपी को व्यक्तिगत रूप से या उसके वकील के माध्यम से या लिखित बयान के माध्यम से पेश करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा है कि अगर वे पेशकश नहीं करते तो उनके विरुद्ध अदालत एकपक्षी फैंसला सुनाएगी।

63 मून्स टेक्नॉलॉजीज कंपनी ने याचिका में कहा है कि उसकी सबसिडियरी कंपनी नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) में पैदा हुए भुगतान संकट के पीछे एक साजिश थी। इस तथ्य के बावजूद कि मूल कंपनी, उसकी सहायक कंपनी या उसके संस्थापकों द्वारा एक भी पाई नहीं ली गई, कथित दुर्व्यवहार के लिए पूरे समूह के खिलाफ कार्रवाई की गई।

उल्लेखनीय है कि एनएसईएल का भुगतान संकट जुलाई 2013 में पैदा हुआ था।

63 मून्स ने चिदंबरम, रमेश अभिषेक और कृष्णन के खिलाफ सीबीआई में आपराधिक शिकायत भी दर्ज की है।

कंपनी के चेयरमैन वेंकट चारी ने पिछले फरवरी में दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भरी और कहा कि कंपनी हर्जाने के रूप में 10,000 करोड़ रुपये दिलवाने के लिए मुकदमा करेगी। उन्होंने आगे कहा कि इस तिकडी ने एनएसईएल के भुगतान संकट से पैदा हुई स्थिती को अधिक बिगाड़ने में सक्रिय भूमिका निभाई है। इसके परिणामस्वरूप, कंपनी के शेयरधारकों भारी नुकसान उठाना पड़ा। साथ ही ग्रुप द्वारा किये जा रहे रोजगारसर्जन में रुकावट आ गई और अर्थव्यवस्था को मिलने वाली महसूली आय भी बंद हो गई। अगर एनएसईएल के खिलाफ कोई साजिश नहीं हुई होती, तो एफटीआयएल ग्रुप का मूल्य 50,000 करोड रुपये से 60,000 करोड़ रुपये तक होता।

इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में, समूह के संस्थापक जिग्नेश शाह ने कहा था, ”मैं इन तीनों के साथ सार्वजनिक चर्चा करने को तैयार हूँ। चाहे तो वे एक साथ आये या एक-एक करके आये। एनएसईएल संकट का भुगतान संकट वास्तव में एक साजिश के तहत था। कुछ बिखरे मुद्दों को इकट्ठा करके संकट को एक घोटाले के रूप में चित्रित किया गया था।”

ऐसा प्रतीत होता है कि एनएसईएल भुगतान संकट को तर्क के आधार पर निपटाया नहीं गया है। सरकार द्वारा नियुक्त विशेष धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआयओ) की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले विवरणों के बावजूद दलालों, डिफॉल्टरों और व्यापारियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। संकट के समय फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के अध्यक्ष रमेश अभिषेक थे। हालाँकि उन्हें दलालों और व्यापारियों की भूमिका के बारे में पता था, उन्होंने एक पक्षपाती मानक अपनाया और केवल एनएसईएल और मूल कंपनी 63 मून्स टेक्नॉलॉजीज को दोषी ठहराने की चाल चली।

चिदंबरम, रमेश अभिषेक और कृष्णन इन तीनों ने कथित तौर पर एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) को 63 मून्स द्वारा खड़ी हुई प्रतिस्पर्धा की चुनौती से बचाने के लिए एफटीआयएल को प्रताड़ित किया। इस बारे में अब सीबीआई जांच कर रही है। उस पर अब वित्तीय क्षेत्र की नज़र है।

इस मामले में बड़ी संख्या में लोगों को दिलचस्पी होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह वित्तीय क्षेत्र के कई अन्य संकटों से अलग है। तीन वरिष्ठ सरकारी लोगों ने एक निजी कंपनी (एनएसई) के हितों की रक्षा के लिए साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाकर देश में उद्यमिता की रीड़ की हड्डी तोड़ने की कोशिश की है।

यह वही पी. चिदंबरम हैं, जिन पर आईएनएक्स मीडिया मामले में भी आरोप लगाए गए हैं और दिल्ली की एक अदालत में उन पर मुकदमा चल रहा है। हैरानी की बात है कि उन्हें अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ 26 बार अदालत से संरक्षण मिला है। उनके बेटे कार्ति भी इसी मामले में आरोपों का सामना कर रहे हैं और उन्हें भी गिरफ्तारी के खिलाफ 26 बार संरक्षण मिला है।

63 मून्स और आईएनएक्स मीडिया, दोनों मामलों से यह देखा जा सकता है कि चिदंबरम पर सरकारी प्रणाली का दुरुपयोग करने का आरोप है। जनता की सेवा करने का नाम लेकर आये हुए लोग सरकारी तंत्र का उपयोग निज़ी स्वार्थ के लिए करते है यह गंभीर चिंता का विषय है। कानूनी किताब में लिखा गया है कि न्याय में विलंब न्याय से वंचित रखने के बराबर कहलाता है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और ईमानदार लोग निराश हो जाते है। यह मामला एक कार्पोरेट समूह नहीं है, बल्कि देश का है। इसीलिए, कानून का सख्त अमल करके जल्द से जल्द न्याय हो यह अपेक्षित है तथा देशहित में है।

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