डॉक्टरों पर हमले पूर्णतः गैरकानूनी और अनुचित

बात अगर एक दिन की होती, एक राज्य की होती तो शायद हम आज यहाँ उसका उल्लेख न करते, लेकिन ऐसा नहीं है। यह घटनाएँ आये दिन होती है और अनेक राज्यों में घट रही है। जी हाँ, हम बात कर रहे है डॉक्टरों पर हो रहे हमलों की।

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के कोलकाता की एनआरएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में दो जूनियर डॉक्टरों पर हुए हमले के बाद समग्र देश में आंदोलन चल रहा है। जैसा कि हमने बताया, अगर बात एक रोज की या कोई छिटपुट घटना की होती तो शायद हम उसकी चर्चा नहीं कर रहे होते। कुछ लोग डॉक्टरों के आंदोलन को राजनीति और धर्म के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा करके वे मुख्य मुद्दे से दूर जा रहे है और समस्या को बदतर स्वरूप दे रहे हैं। हमने विचारक्रांति में इस विषय पर आप से बात करनी चाही क्यों कि राजनीति और धर्म से परे ही बात करनी आवश्यक है।

भारत में डॉक्टरों पर अस्पतालों में हमले होते है। सर्वाधिक हमले इमरजेंसी विभाग में ही होते है। अस्पताल में आए हरेक मरीज़ का इलाज कर के उसे स्वस्थ करना और मरते हुए रोगी को बचाना यह कर्तव्य डॉक्टर बजाते है और फिर भी उन्हें ही मरीज़ की मौत का जिम्मेदार ठहराकर उनके साथ बदसलूकी की जाती है, यह सोचनीय बात है।

आंकडे दर्शाते है कि अब तक सब से अधिक हल्ले दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में हुए है। इस कारण से भी कोलकाता के एक केस को हम यहाँ इतना महत्त्व नहीं दे रहे और इसीलिए उस के साथ राजनीति तथा धर्म को जोड़ने का जो प्रयास है उस में जरा भी दिलचस्पी नहीं है।

सब से पहले प्राथमिक मुद्दा लेते है। अगर इलाज में कोई लापरवाही हुई हो तो भी कानून को अपने हाथ में लेना अनुचित है। अपने देश में मेडिको-लीगल केस लड़े जाते है और वह ही उचित रास्ता है। इमरजेंसी वॉर्ड में दाखिल किये गये मरीज़ को किस इलाज की आवश्यकता है यह जिस तरह हम-आप जैसे सामान्य नागरिक तय नहीं कर सकते, ठीक उसी तरह किये गये इलाज का नतीजा क्या होगा वह डॉक्टर तय नहीं कर सकते। उनका काम उस समय मेडिकल शास्त्र के अंतर्गत जो आवश्यक है वह चिकित्सा करना है। अगर परिणाम उनके हाथ में होता तो किसी मनुष्य की अस्पताल में मृत्यु ही न होती।

कानून को अपने हाथ में न लेना और चिकित्सा का परिणाम डॉक्टरों के हाथ में नहीं है इन दो मुद्दों को भी अगर स्वीकार कर लिया जाये तो डॉक्टरों पर हो रहे हमले गैरकानूनी और अनुचित बन जाते है। बाकी सारी बातें बाद में आती है।

इसी लिए जो लोग राजनैतिक तथा धार्मिक मुद्दे के साथ उसे जोड़ने की कोशिश करते है वे मसले को ज्यादा गंभीर बना देते है।

इस विषय पर हम हमारी बातें आगे जारी रखेंगे। हमें इस के अनेक पहलूओं की यहाँ चर्चा करनी है। कृपया हमारे साथ बनें रहें।

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