सिक्यॉरिटीज मार्केट में सालों से काम कर रहे लोग भी जिसे गलत बता रहे है, उस एनएसई को-लोकेशन मामले में सिक्यॉरिटीज मार्केट की विनियामक संस्था सेबी ने नरम रवैया अपनाया है। सेबी ने की हुई कारवाई सिर्फ़ दिखावा बनकर रह गई है। यह ही कारण है कि जब अभियुक्तों ने उस के खिलाफ अपीलीय बॉडी सॅट में अपील दायर की तब उन सभी को राहत दी गई है।
कई अखबारों ने सेबी के इस रवैयी की आलोचना की है। उनका कहना है कि को-लोकेशन दरअसल धोखाधड़ी का केस है और उस में धोखाधड़ी के पहलू को ध्यान में रखकर उचित जांच होनी चाहिए, लेकिन सेबी ने उसे ‘आचारसंहिता का भंग’ कहकर उसकी गंभीरता कम कर दी है।
प्रतिभूति और अपीलीय न्यायाधिकरण (सिक्यॉरिटीज एपलेट ट्रिब्युनल – सॅट) ने कुछ ब्रोकर सहित 12 प्रमुख अभियुक्तों के खिलाफ सेबी द्वारा उठाये गये कदम के सामने अंतरिम स्थगन देने का निर्णय लिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जांच में कमी रखी गई है।
अहम सवाल यह है कि सेबी ने एनएसई के इस मामले में मिलीभगत और धोखाधड़ी के पहलूओं की कोई जांच क्यों नहीं की। को-लोकेशन का मामला एनएसई की व्यापार प्रणालियों में की गई ‘सोची समझी प्रक्रियात्मक चूक’ के माध्यम से बाजार में हुई धांधली की ओर इशारा करता है। लेकिन सेबी ने इसे महज ‘आचार संहिता के उल्लंघन’ के रूप में देखा है। सेबी ने एनएसई को आदेश दिया था कि उसे 1,000 करोड़ रूपये जमा कराने होंगे। यह आदेश एनएसई में हुई धांधली की तुलना में बहुत ही कम है। एक अंदाज के अनुसार को-लोकेशन में कुछ चुनिंदा ब्रोकरों को 50,000 से 60,000 करोड रूपयों का फायदा कराया गया था। को-लोकेशन के लिए शुल्क तो सभी ने दिया था लेकिन कुछ ब्रोकरों को दूसरों की तुलना में अधिक लाभ कराया गया।
को-लोकेशन मामले में NSE और उसके अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार के गंभीर आरोप को ध्यान में रखकर कारवाई करने की आवश्यकता थी लेकिन विनियामक ने उस आरोप को ही लागू नहीं किया। अपने आदेश में, सेबी ने कहा, “इस परिदृश्य में, एक्सचेंज के खिलाफ़ धोखाधड़ी का आरोप लगाने का मतलब यह होगा की उस ने जान-बूझ़कर सब किया, लेकिन उस आरोप का कोई सबूत नहीं है।”
सेबी को इस केस में छानबीन करके यह देखना चाहिये था कि कहा घोटाला हुआ है, लेकिन उसने उलटा यह कह दिया की प्रक्रियात्मक चूक कोई धोखाधड़ी नहीं थी।
पिछले घोटाले
इतिहास से पता चलता है कि सभी बाजार घोटालों की शूरूआत ‘प्रक्रियात्मक चूक’ से ही होती है। उदाहरण के लिए, हर्षद मेहता और केतन पारेख के घोटालों में बैंकिंग प्रणाली की एक प्रक्रियात्मक चूक जिम्मेदार थी। लेकिन प्रारंभिक जांच के बाद जब आपराधिक जांच हुई तब बड़ा घोटाला सामने आया।
सेबी ने पूरी जांच किये बिना ही यह कह दिया कि को-लोकेशन मामले में कोई घोटाला नहीं हुआ। गौरतलब है कि एनएसई के खिलाफ फोरेंसिक ऑडिटर्स को केवल प्रणालीगत चूक की जांच करने को ही कहा गया था; धोखाधड़ी का पता लगाने पर जोर कभी नहीं था। जब घोखाधड़ी की जांच ही नहीं हुई तब सेबी यह कैसे तय कर सकता है कि कोई धोखाधड़ी ही नहीं हुई? साथ ही, फोरेंसिक ऑडिटर और एनएसई के बीच हितों का टकराव था यह शिकायतें भी सामने आई हैं। क्या को-लोकेशन इश्यू सिर्फ़ आचारसंहिता का उल्लंघन था?
वर्षों पहले, SEBI ने पिरामिड साईमिरा के जनसंपर्क अधिकारियों से जुड़े एक पत्र की जालसाजी के बारे में एक आपराधिक शिकायत दर्ज की थी। उस मामले में, मूल्य की धांधली हुई है ऐसा साबित करने के लिए पुलिस सहायता ली गई थी। एक को दूसरे से अधिक सुविधा देकर लाभ करवाने के इस मामले में यह रवैया क्यों नहीं अपनाया गया?
सेबी की तकनीकी सलाहकार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एनएसई आर्किटेक्चर में हेरफेर, बाजार का दुरुपयोग, और कुछ ट्रेडिंग सदस्यों को दूसरों के मुकाबले लाभ करवाया गया। एनएसई के आर्किटेक्चर का दुरुपयोग हो रहा है ऐसी शिकायतों की ओर एनएसई ने ध्यान नहीं दिया और सेबी ने भी इन तथ्यों की अनदेखी की है।
(एनएसई को-लोकेशन घोटाले के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढियें: https://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/co-location-scam-jigsaw-and-how-sebi-cracked-the-code/articleshow/69128158.cms
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Great Article
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